'पुलिस कैसे कह सकती है अपराध उन्होंने ही किया है, और किसी ने नहीं?'
फोटो: जॉलीअम्मा जोसफ को कूडाठाई गाँव, कोज़िकोड ज़िला, केरल में 14 वर्षों में एक परिवार के छः लोगों की मौत के सिलसिले में गिरफ़्तार किया जा रहा है। फोटोग्राफ: ANI
जब से जॉलीअम्मा जोसफ पर 2002 से 2016 के बीच एक परिवार के छः सदस्यों की हत्या का, यानि कि 'ख़ूंखार सायनाइड हत्यारा' होने का आरोप लगने की ख़बर सामने आयी है, तब से सिर्फ वारदात के स्थल, कोज़िकोड, केरल में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में सनसनी फैल गयी है।
केरल पुलिस के अनुसार, जॉलीअम्मा ने सबसे पहले अपनी सास अन्नम्मा थॉमस, 57 की हत्या अगस्त 22, 2002 को उनके घर पर मटन सूप में ज़हर मिला कर की।
उनके अगले शिकार बने टॉम थॉमस पोन्नामत्तम, 66, एक रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी, जिनकी तबीयत सायनाइड मिलाये हुए टैपिओका खाने के बाद बिगड़ी और अगस्त 26, 2008 को उनका स्वर्गवास हो गया।
सितंबर 30, 2011 को जॉलीअम्मा के पति रॉय थॉमस की रहस्यमय तरीके से मौत हो गयी और उनके शरीर में सायनाइड के अंश मिले थे, लेकिन इस मामले को आत्महत्या बता कर रफ़ा-दफ़ा कर दिया गया था।
पुलिस के अनुसार जॉली का चौथा शिकार था एम एम मैथ्यू मंजादियिल, 68, अन्नम्मा थॉमस का भाई, जिसका देहांत फरवरी 2, 2014 को हुआ।
तीन महीने बाद, मई 5, 2014 को जॉली के मौजूदा पति शाजू ज़कारिया को उनकी पहली पत्नी से हुई बेटी अल्फीन शाजू, 2 की मौत धार्मिक भोज के दौरान ब्रेड के टुकड़े और मटन करी खाने से हुई।
अंत में, जनवरी 11, 2016 को, शाजू की पत्नी सिली, 44 की मौत एक क्लिनिक में ज़हरीला पानी पीने से हुई, जहाँ उनके पति एक डेंटिस्ट से इलाज कराने गये हुए थे। उसके बाद जॉली ने शाजू से शादी कर ली।
जहाँ एक ओर पूरा राज्य इस मामले की भयानक कहानी सुनकर दंग है, वहीं ऊंचे दर्जे के केस लड़ने के लिये मशहूर जॉली के वकील बिजू ऐंथनी अलूर का कहना है कि जब तक आरोप साबित न हो जाये, जॉली को दोषी नहीं कहा जा सकता।
"आरोपी का बचाव करना वकील का कर्तव्य होता है, भले ही पूरी दुनिया उसके ख़िलाफ़ क्यों न हो। अदालत ही फ़ैसला करेगी कि जॉलीअम्मा ने अपराध किया है या नहीं," अलूर ने रिडिफ़.कॉम के सैयद फिरदौस अशरफ़ को बताया।
आपने जॉलीअम्मा जोसफ का केस क्यों लिया, जिसने पूरे देश में सनसनी फैला दी है?
मैंने इस केस को लिया क्योंकि एक व्यक्ति (जॉलीअम्मा के क़रीबी) ने मुझसे आग्रह किया। मुझे बताया गया कि यह मामला एक महिला पर कई हत्याओं का आरोप मढ़े जाने जितना गंभीर है।
मैंने उस महिला का बचाव करने का फैसला किया और, इसलिये, वकालतनामा फाइल किया (जो वकील को मुवक्किल की ओर से कदम उठाने का अधिकार देता है)।
इस मामले में, आरोपी के ख़िलाफ़ जनता का विचार बहुत ही मज़बूत है।
आरोपी का बचाव करना वकील का कर्तव्य होता है, भले ही पूरी दुनिया उसके ख़िलाफ़ क्यों न हो।
आरोपी के अधिकारों को भी सुरक्षित रखा जाना चाहिये। अदालत ही फ़ैसला करेगी कि जॉलीअम्मा ने अपराध किया है या नहीं।
जॉलीअम्मा के बचाव में आपका रुख़ क्या होगा? क्या आप दोषी नहीं होने की बात रखेंगे?
उन्होंने पुलिस को बताया है कि ये सभी मौतें या तों आत्महत्या से हुई हैं या दिल के दौरे से।
पुलिस और जाँच एजेंसियाँ ही तय करेंगी कि इन मामलों को आत्महत्या कहा जाना चाहिये या हत्या।
अभियोगी पक्ष के नज़रिये से अपराध का कारण संपत्ति है।
अभी तक, उन्हें कोई भी संपत्ति या रकम सौंपी नहीं गयी है, न तो वसीयत के अनुसार और न ही (जीवित लाभार्थी के रूप में)।
उन्होंने किसी भी संपत्ति को अपने नाम कराने की कोशिश नहीं की है। संपत्ति या पैसों का कोई भी हस्तांतरण अभी तक नहीं हुआ है।
उन्हें कोई भी लाभ नहीं दिये गये हैं। तो अभी कैसे कहा जा सकता है कि संपत्ति या पैसे हत्या का उद्देश्य थे?
पुलिस ने कहा कि जॉली ने अपने बयान में संपत्ति के लिये अपराध करने की बात मानी है।
पुलिस को दिये गये बयान स्वीकार नहीं किये जाते (सबूत के तौर पर)। सिर्फ मैजिस्ट्रेट को दिया गया बयान माना जा सकता है, नहीं तो प्रमाण अधिनियम के तहत सिर्फ एक जानकारी है, उससे ज़्यादा कुछ भी नहीं।
रोजो, जॉली के पहले पति का भाई कहता है कि उसने नकली काग़ज़ात बनवा कर ग़ैरकानूनी तरीके से परिवार की ज़ायदाद हड़पने की कोशिश की थी। क्या यह सच है?
यह आरोप संपत्ति से कमाये गये पैसों पर समझौता करने के उद्देश्य से लगाया गया था।
रोजो, जॉलीअम्मा के पहले पति का भाई उन पैसों में हिस्सेदारी चाहता था, जो जॉलीअम्मा के नाम पर ट्रांसफर हो जाते।
जॉलीअम्मा को इस संपत्ति से अभी तक कोई लाभ नहीं मिले हैं।
वैसे भी, नकली दस्तावेज़ बनवाने का आरोप साबित किया जाना चाहिये (अदालत में)।
पुलिस का कहना है कि एम एस मैथ्यू और प्रजीन कुमार, जॉली को सायनाइड बेचने वाले सुनारों ने अपने बयानों में आरोप स्वीकार कर लिया है।
अभियोग पक्ष के अनुसार यह सच हो सकता है लेकिन हम जॉलीअम्मा के ख़िलाफ़ अलग-अलग मामलों को नहीं देख रहे।
पुलिस या जाँच एजेंसियों ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि उन छः लोगों को सायनाइड या ज़हर दिया किसने।
मेरा कहना है कि यह मामला पुलिस द्वारा लगाये गये झूठे आरोपों का सिलसिला है। इन आरोपों को आरोपी के ख़िलाफ़ सबूत नहीं माना जा सकता।
दो साल की बच्ची का क्या? उसकी मौत का क्या कारण था? और बाकी पाँच लोगों की मौत के क्या कारण थे? उनके मृत्यु प्रमाणपत्रों पर क्या लिखा है?
जाँच एजेंसियों के अनुसार, जॉलीअम्मा के (पहले) पति के मृत्यु प्रमाणपत्र पर लिखा है कि उनके शरीर में कोई विषैला पदार्थ पाया गया था।
बच्ची की मौत पर कोई छान-बीन नहीं की गयी है।
माननीय न्यायालय से मेरा आग्रह है कि अभियोग पक्ष की ज़िम्मेदारी है यह साबित करना कि विषैला पदार्थ पाया गया था (सभी मृत लोगों के शरीर में)। या फिर यह पदार्थ (सायनाइड) जॉलीअम्मा ने दिया था।
जॉली का कहना है कि उन्हें चूहे मारने के लिये सायनाइड की ज़रूरत थी। पुलिस का कहना है कि मैथ्यू ने उन्हें वह ज़हर दिया, जिसका इस्तेमाल छः लोगों को मारने के लिये किया गया।
एक बार फिर, यह सिर्फ एक आरोप है। उनपर ठोस संदेह हो सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि सिर्फ ठोस संदेह को अदालत में सबूत के तौर पर नहीं देखा जा सकता।
इन सभी आरोपों की बुनियाद होनी चाहिये, नहीं तो इनका इस्तेमाल गिरफ़्तार हुई महिला के ख़िलाफ़ नहीं किया जा सकता।
यह झूठा केस जॉलीअम्मा को फँसाने के लिये बनाया गया है। उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है।
आपको पूरा विश्वास है कि जॉलीअम्मा निर्दोष हैं।
आज (बुधवार को) कई वकील उनसे मिले, और उन्होंने बताया कि उनपर छः हत्या के आरोप कबूल करने के लिये दबाव डाला जा रहा है।
पुलिस ने पहले तो वकीलों को उनसे मिलने नहीं दिया था, लेकिन अदालत ने अनुमति दे दी।
उन्होंने बताया कि जाँच एजेंसियाँ उनपर दबाव बना रही हैं और उनपर झूठे आरोप मढ़ रही हैं।
पुलिस बिना कारण किसी एक महिला को अपना निशाना क्यों बनायेगी?
यही बात आम जनता को सोचनी चाहिये। 2002 से 2016 तक उनपर कोई आरोप नहीं था।
तो अचानक इस तरह की शिकायत कैसे सामने आयी और जाँच शुरू की गयी?
यह भी देखा जाना चाहिये कि इतने लंबे समय तक किसी के भी ख़िलाफ़ कोई भी शिकायत दर्ज नहीं की गयी थी।
पुलिस इतनी आसानी से कैसे कह सकती है अपराध उन्होंने ही किया है, और किसी ने नहीं?
लेकिन ये मौतें काफी मिलती-जुलती हैं और एक ही परिवार में हुई हैं, कुछ तो गड़बड़ ज़रूर है।
इसकी जाँच की जानी चाहिये।
मृत शरीरों का क्या? क्या सायनाइड का पता लगाने के लिये पुलिस उन्हें खोद कर निकालेगी?
यह बेहद मुश्किल है। मुझे नहीं लगता कि खोद कर निकाले गये शरीरों के पोस्ट-मॉर्टम में सफलतापूर्वक सायनाइड का पता लगाया जा सकता है। अब बहुत देर हो चुकी है।