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शाहिद कपूर को किस बात का 'डर' सता रहा था!

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June 21, 2019 18:50 IST

'आपको हमेशा कुछ अलग, कुछ नया करने की ज़रूरत महसूस होनी चाहिये।'

'मुझे नहीं लगता मुझे अपनी सफलता से संतुष्ट होना चाहिये।'

Kind courtesy Shahid Kapoor/Instagram

फोटोग्राफ: Shahid Kapoor/Instagram के सौजन्य से

क्या शाहिद कपूर घमंडी हैं?

शायद नहीं।

लेकिन 16 साल से भी ज़्यादा समय इंडस्ट्री में बिताने के बाद, उसे पता है कि ऐसे सवालों का सामना कैसे किया जाता है, जिनका जवाब न देना ही बेहतर है।

शाहिद की कबीर सिंह  तेलुगू हिट अर्जुन रेड्डी  की रीमेक है और इसमें वो काफ़ी संजीदा रोल में दिखेंगे।

"मुझे लगता है संजीदा किरदार ज़्यादा दिलचस्प होते हैं," उन्होंने पैट्सी एन/रिडिफ़.कॉम को बताया।

अब आप और भी पतले हो गये हैं।

हाँ, कबीर सिंह के लिये मैंने काफी वज़न कम किया है। वज़न को अभी तक मैं वापस बढ़ा नहीं पाया हूं।

असल ज़िंदग़ी में आप शराब बिल्कुल नहीं पीते। तो आपने कबीर सिंह में शराबी का किरदार कैसे निभाया?

ये बड़ी चुनौती की बात है, है ना?

जो काम आपने ज़िंदग़ी में कभी किया ही नहीं हो, और आपको पता नहीं हो कि उसमें कैसा महसूस होता है, तो आपके लिये वही काम करना बेहद मुश्किल हो जायेगा। इसलिये ये रोल मेरे लिये चुनौतियों से भरा था।

इसे समझने और अपने भीतर डालने में बड़ी मेहनत लगती है।

मैंने पिये हुए लोगों को देखा है, और मुझे पता है वो किस तरह की हरकतें करते हैं। लेकिन वो तो सिर्फ बाहरी तौर पर महसूस की हुई चीज़ें हैं।

जब आपको इसे अपने भीतर लाना हो, तो आपको उनके हर एहसास को और उनकी उन हरकतों के पीछे छुपे कारण को समझना होता है।

कमीने  और उड़ता पंजाब  के बाद यह 'ए' सर्टिफिकेट वाली आपकी तीसरी फिल्म है।

सर्टिफिकेशन का पता तो आपको मुझसे भी पहले चल जाता है।

मैंने ऐसा इसलिये कहा क्योंकि अर्जुन रेड्डी  एक ऐडल्ट फिल्म थी।

अर्जुन रेड्डी अर्जुन रेड्डी  है और ये कबीर सिंह   है।

लेकिन आपका सवाल क्या है?

क्या आप आपके छोटी उम्र के फैन्स को पराया कर देंगे?

तो आप चाहती हैं कि मैं सिर्फ 10 साल के बच्चों के लिये ही फिल्में करूं? ऐडल्ट्स के लिये नहीं?

आपको भटके हुए किरदार क्यों पसंद आते हैं?

दर्शकों को भटके हुए किरदार क्यों पसंद आते हैं?

हमने इतने साल मि. बच्चन के ऐंग्री यंग मैन वाले रूप से क्यों प्यार किया है?

इतने गंभीर किरदार के बावजूद देवदास  को एक क्लासिक क्यों माना जाता है?

रॉबर्ट डी निरो और अल पचीनो को दुनिया के बेहतरीन ऐक्टर्स में क्यों गिना जाता है?

मक़बूल  मेरे पिता की सबसे यादग़ार फिल्म क्यों है?

हैदर  मेरे करियर की सबसे अच्छी फिल्मों में से एक क्यों है?

विशाल भारद्वाज को एक महान फिल्म-मेकर का दर्जा क्यों दिया गया है?

आप मुझे पहले इन सवालों के जवाब दीजिये।

Shahid Kapoor and Kiara Advani in Kabir Singh.

फोटो: कबीर सिंह में शाहिद कपूर और कियारा आडवाणी।

अलग-अलग ऐक्टर्स अलग-अलग किरदारों की ओर आकर्षित होते हैं...

आप मूवीज़ में वही देखना चाहते हैं जो आपको असल ज़िंदग़ी में नहीं दिखता।

मुझे लगता है कि संजीदा किरदार ज़्यादा दिलचस्प होते हैं।

लोगों को हमेशा स्क्रीन पर अपने पैसे वसूल करने होते हैं, आम ज़िंदग़ी को स्क्रीन पर देखना उन्हें रास नहीं आता।

आम ज़िंदग़ी के किरदार दिलचस्प नहीं होते।

आप ऐसे किरदार चाहते हैं, जो पर्दे पर आकर आपकी धड़कनों को तेज़ करें, आपको रोमांचित करें।

जितना गंभीर किरदार होगा, उतनी ही ज़्यादा तारीफें मिलेंगी।

कुछ ऐक्टर्स मेथड ऐक्टिंग करते हैं...

तो ख़ून वाले रोल में क्या वो ख़ून करते हैं? थोड़ा ज़्यादा लगा ना?

इतना तो समझने का कौन सा बाउंसर फेंक रहा है? तो डक करने का।

जैसे आमिर ख़ान ने राजा हिंदुस्तानी  के एक सीन के लिये शराब पी ली थी।

मुझे पता है... मैं शराब को हाथ नहीं लगाता।

शायद इसे पीने वाला कोई इंसान किसी सीन के लिये इसे आज़मा सकता है।

लेकिन मैं ऐसा नहीं करता, मैं इसे लेकर कम्फर्टेबल महसूस नहीं करता।

मैं तुलना तो नहीं करूंगा, लेकिन मेरे नज़रिये से यह काफी मुश्किल था।

Shahid with wife Mira and kids Misha and Zain. Photograph: Kind courtesy Mira Rajput/Instagram

फोटो: शाहिद अपनी पत्नी मीरा और बच्चों मिशा और ज़ेन के साथ। फोटोग्राफ: Mira Rajput/Instagram के सौजन्य से

आप इतने संजीदा किरदारों को अपने दिमाग़ से कैसे निकाल पाते हैं?

मेरे बच्चे मेरी मदद करते हैं!

एक घंटे के उस कार के सफर के दौरान ख़ुद को बदलने के सिवाय मेरे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं होता।

किसी भी हालत में मैं उन्हें कबीर सिंह का रूप तो नहीं दिखा सकता।

मुझे पूरी तरह किरदार से बाहर आकर आम ज़िंदग़ी में लौटना सीखना पड़ा।

ऐसा करना बहुत मुश्किल होता था, क्योंकि बार-बार मुझे ख़ुद को बदलना पड़ता था, लेकिन मेरे लिये यह काफी अच्छा रहा, क्योंकि घर लौटने पर, जब आप आम वातावरण में आते हैं तो यह चीज़ आपमें एक नयी जान डाल देती है।

आपने यह फिल्म क्यों की?

मुझे अर्जुन रेड्डी  बहुत पसंद आयी थी।

मुझे यह किरदार इतना असली लगा, कि मैं दिल से उससे जुड़ गया।

इस किरदार में ऐक्टर के करने के लिये बहुत कुछ है और मैं ख़ुशनसीब हूं कि ये मेरे पास आया।

मुझे फिल्म-मेकर का टोन बहुत पसंद आया।

मुझे लगा कि फिल्म बहुत ही वास्तविक है।

ये एक असली, ढीठ किरदार की बेहद रोमांचक कहानी है।

यह किरदार प्यार, ग़ुस्से और डिप्रेशन जैसी भावनाओं से डरता नहीं है।

वो डरावने या ख़ूबसूरत पलों से भागता नहीं है, इसलिये मुझे इसमें एक सच्चा अनुभव मिला है।

मैं बता नहीं सकता कि मुझे इस फिल्म में कितना मज़ा आया है। मुझे लगता है कि मैं हिंदी फिल्म दर्शकों को यही सौग़ात देना चाहता था।

The two versions of Shahid Kapoor in Kabir Singh. Photograph: Kind courtesy Shahid Kapoor/Instagram

फोटो: कबीर सिंह में शाहिद कपूर के दो रूप। Shahid Kapoor/Instagram के सौजन्य से

आपको अपने किरदार को विजय देवराकोंडा के किरदार से अलग बनाने के लिये क्या करना पड़ा?

मैं अर्जुन रेड्डी  का फैन हूं।

मुझे उस फिल्म की हर चीज़ पसंद आयी, लेकिन जब मैंने कबीर सिंह  शुरू की, तो अर्जुन रेड्डी  को मैंने पूरी तरह अपने दिमाग से निकाल दिया।

मुझे एक नया किरदार बनाना था।

मेरी तैयारी दिमाग़ी तौर पर थी, और मैं शब्दों में आपको बता नहीं पाऊंगा।

शारीरिक बदलाव तो स्वाभाविक था, फिल्म के एक हिस्से में मैंने वज़न बढ़ाया है और अपने बाल-दाढ़ी को बढ़ा रखा है।

फिर, मुझे उस वज़न को कम भी करना पड़ा।

लेकिन वो आसान रहा।

सबसे मुश्किल था किरदार के दिमाग़ में घुसना, जिसमें थोड़ा समय लगता है... फिल्म-निर्माता के साथ समय बिताते और सीन्स करते-करते यह चीज़ धीरे-धीरे होती है। आप धीरे-धीरे किरदार से जुड़ने लगते हैं।

यह एक रिश्ते की तरह है; जितना ज़्यादा आप किसी से मिलेंगे, उतना ही ज़्यादा आप उसे जानेंगे।

Shenaz Treasury, Amrita Rao and Shahid Kapoor in Ishq Vishk.

फोटो: शेनाज़ ट्रेज़री, अमृता राव और शाहिद कपूर इश्क़ विश्क में।

आपने अपनी डेब्यू फिल्म इश्क़ विश्क में कॉलेज स्टूडेंट का किरदार निभाया था। आज 16 साल बाद एक बार फिर आप कॉलेज स्टूडेंट बने हैं।

मैं इसी बात से बहुत डरा हुआ था!

मुझे लगा कि मेरा छोटा भाई, मेरी पत्नी और मेरे बच्चे बड़े होकर बोलेंगे, 'क्या करने की ज़रूरत थी पापा, भूल गये थे क्या आप 38 हो?'

मुझे इस बात का डर सता रहा था कि मैं इसे ठीक से कर पाऊंगा या नहीं।

ये एक रिस्क था।

लेकिन मुझे यह किरदार बहुत पसंद आया और इसे निभाने में मैंने पूरी मेहनत की है।

क्या इस गंभीर किरदार को निभाने में आपका अनुभव आपके काम आया?

मुझे यह रोल बिल्कुल सही समय पर मिला। अगर ये मुझे पहले मिला होता, तो मुझे पता नहीं होता कि इसे कैसे करना है।

यह काफ़ी थकाने वाला काम था, क्योंकि यह एक संजीदा किरदार था।

यह फिल्म पूरी तरह आक्रामक, दिल टूटने वाले पलों और जुनून वाले पलों से भरी हुई है।

क्या ये सच है कि प्रभास ने आपको कॉल करके कहा कि कबीर सिंह अर्जुन रेड्डी  से अच्छी है?

उन्होंने मुझे कॉल किया कहा कि फिल्म बहुत अच्छी बनी है।

मैं बेहतर या बदतर नहीं कहूंगा, मैं तुलना नहीं करना चाहता।

उन्होंने बहुत तारीफ़ की और उन्हें प्रोमो बहुत पसंद आया।

मैं दिल से उनका धन्यवाद करूंगा क्योंकि उन्हें मैं बड़े पर्दे पर बहुत पसंद करता हूं। अर्जुन रेड्डी  की करीबी फ्रैटर्निटी से तारीफ़ पाना बेहद ख़ुशी की बात है।

Shahid Kapoor

फोटोग्राफ: अभिजीत म्हामुणकर

क्या आपका अगला रोल हल्का-फुल्का होगा?

मुझे लगता है कि रोल अच्छा और आकर्षक होना चाहिये। दर्शकों को उसमें दिलचस्पी होनी चाहिये।

रोल हल्का-फुल्का हो, या भारी-भरकम, मुझे उसकी फिक्र नहीं है।

क्या आप अपने करियर से ख़ुश हैं?

नहीं। आपको हमेशा कुछ अलग, कुछ नया करने की ज़रूरत महसूस होनी चाहिये।

मुझे नहीं लगता मुझे अपनी सफलता से संतुष्ट होना चाहिये।

मैंने अपने करियर के पहले 10 साल में लोगों को इससे ज़्यादा सफलता पाते देखा है।

मेरा सफर उतार-चढ़ाव से भरा रहा है, और अभी मुझे बहुत दूर जाना है।

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