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ये ओडिशा के गरीबों को डॉक्टर बनने में मदद करते है

By ए गणेश नाडार
November 04, 2019 13:05 IST
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पारिवारिक और आर्थिक समस्याओं के कारण अजय बहादुर सिंह डॉक्टर नहीं बन सके।

अब वह भुबनेश्वर के आर्थिक रूप से पिछड़े विद्यार्थियों की डॉक्टर बनने में मदद करते हैं।

In 2017, Ajay Bahadur Singh started the Zindagi Foundation in Bhubaneshwar to coach financially challenged students and fulfill their dreams of pursuing medicine. Photographs: Kind courtesy Ajay Bahadur Singh 

फोटो: 2017 में, अजय बहादुर सिंह ने आर्थिक रूप से असमर्थ विद्यार्थियों की शिक्षा और डॉक्टर बनने के उनके सपने को पूरा करने के लिये भुबनेश्वर में ज़िंदग़ी फाउंडेशन की शुरुआत की। फोटोग्राफ: अजय बहादुर सिंह के सौजन्य से 

अजय बहादुर 18 वर्ष के थे जब वह मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे।

1990 में, सिंचाई विभाग, झारखंड सरकार में इंजीनियर के पद पर कार्यरत अजय के पिता गंभीर रूप से बीमार पड़ गये। सिर्फ गुर्दे का ट्रांसप्लांट ही उनकी जान बचा सकता था।

अंत में, चेन्नई में उनके पिता की सर्जरी के लिये उनके परिवार को अपनी संपत्ति बेचनी पड़ी।

अजय के पास अपने डॉक्टर बनने के सपने को छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं बचा।

रोज़ी-रोटी चलाने और अपने पिता के इलाज के बिल चुकाने के लिये, अजय ने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया।

उन्होंने देवघर, झारखंड में चाय और शर्बत का एक स्टॉल भी शुरू किया।

ग्रैजुएशन की पढ़ाई करते हुए, अजय सोडा बनाने वाली मशीनें भी बेचा करते थे।

1996 में, उन्होंने बैंकिंग, कर्मचारी चयन समिति, रेलवे, NDA जैसी प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं की तैयारी में विद्यार्थियों की सहायता के लिये पटना में करतार कोचिंग सेंटर शुरू किया।

एक दशक बाद, 2007 में, उन्होंने अद्यंत एड्युकेशनल ऐंड चैरिटेबल ट्रस्ट के अधीन भुबनेश्वर में कक्षा 12 के विद्यार्थियों के लिये अद्यंत नामक प्राइवेट कॉलेज शुरू किया।

सुपर 30 के जन्मदाता, अपने दोस्त और मार्गदर्शक आनंद कुमार से प्रेरित होकर अजय ने ऐटम 50 की शुरुआत की।

इसके पीछे की सोच साफ़ थी -- वह ग़रीब, कड़ी मेहनत करने वाले, प्रतिभाशाली, अनुसूचित जनजाति और आर्थिक रूप से असमर्थ वर्ग के विद्यार्थियों के मेडिसिन और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के सपने को पूरा करने में उनकी मदद करना चाहते थे।

आनंद कुमार 12वीं पास कर चुके विद्यार्थियों को चुनते हैं, जबकि अजय ने कक्षा 10 के बाद से ही युवाओं को प्रशिक्षित करने का फैसला किया और 12वीं कक्षा तक उनकी पढ़ाई का खर्च भी उठाया।

पिछले वर्षों में ऐटम 50 के कई विद्यार्थी इंजीनियरिंग और मेडिकल संस्थाओं में सफलतापूर्वक दाखिला पा चुके हैं।

एक बार, पुरी के जगन्नाथ मंदिर की यात्रा के दौरान उन्होंने एक छोटी बच्ची को मोमबत्ती, दिये और बाती जैसी पूजा सामग्रियाँ इकठ्ठी करते देखा। उसके हाथ में फिज़िक्स (भौतिकी) की एक किताब थी।

अजय को पता चला कि पिता कमाई बेहद कम होने के कारण उस बच्ची की पढ़ाई छूट गयी थी।

इसी बात से अजय को 2017 में ग़रीब और असमर्थ वर्ग के विद्यार्थियों के लिये ज़िंदग़ी फ़ाउंडेशन की शुरुआत करने की प्रेरणा मिली। इसका मुख्य लक्ष्य था मेडिकल कॉलेज का सपना देखने वाले विद्यार्थियों का प्रशिक्षण।

अजय अपने शैक्षणिक संस्थानों -- अद्यंत साइंस कॉलेज और अन्य कोचिंग संस्थाओं की कमाई से फ़ाउंडेशन का खर्च चलाते हैं।

पहले वर्ष में, NEET (भारत में मेडिकल संस्थाओं में दाखिले के लिये प्रवेश परीक्षा) का प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले 20 विद्यार्थियों में से 18 सफल रहे। 12 विद्यार्थियों ने पूरे भारत में सरकारी विद्यालयों में दाखिला लिया।

2018 में, ज़िंदग़ी फाउंडेशन के सभी 14 विद्यार्थी NEET में सफल रहे।

इस वर्ष NEET के लिये 19 विद्यार्थियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया है।

"मैंने सभी सरकारी स्कूल शिक्षकों से निवेदन किया है कि वे विद्यार्थियों को हमारे बारे में बतायें और साथ ही हमें ग़रीब प्रतिभाशाली बच्चों से जोड़ें," अजय ने रिडिफ़.कॉम के ए गणेश नाडार को बताया।

Students of the Zindagi Foundation interact with Odisha Chief Minister Naveen Patnaik.

फोटो: ज़िंदग़ी फाउंडेशन के विद्यार्थी उड़ीसा के मुख्य मंत्री नवीन पटनाइक से बात करते हुए।

"हम एक प्रवेश परीक्षा और उसके बाद एक इंटरव्यू लेते हैं," अजय ने समझाया। "इंटरव्यू आर्थिक स्थिति पता करने के लिये लिया जाता है, जिसके बाद हम सबसे कमज़ोर विद्यार्थियों को चुन लेते हैं।"

"हम उनके उत्साह, सफल होने के दृढ़ निश्चय और लगन पर भी ध्यान देते हैं," उन्होंने आगे कहा। "हमारे यहाँ प्रशिक्षण पाने वाले विद्यार्थियों की कोई अधिकतम सीमा नहीं है।"

चुन लिये जाने पर विद्यार्थी अपने प्रक्षिक्षण केंद्र के पास अलग-अलग छात्रावास में रहते हैं। विद्यार्थियों को बताया जाता है कि उन्हें दी जाने वाली कोचिंग सिर्फ एक अतिरिक्त सहायता है और ख़ुद अध्ययन करना सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है।

अभी उनके पास सिर्फ उड़ीसा के विद्यार्थी हैं, लेकिन जल्द ही वह और राज्यों को जोड़ने की योजना बना रहे हैं।

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ लॉ ऐंड मैनेजमेंट, दिल्ली से शिक्षा प्राप्त कर चुके शिवेन सिंह चौधरी एक वर्ष से ज़्यादा समय से ज़िंदग़ी फाउंडेशन के कोऑर्डिनेटर के रूप में काम कर रहे हैं।

"मैं पहले दो महीनों तक रोज़ विद्यार्थियों से मिलता हूं," उन्होंने बताया। "हम बातों से उन्हें प्रेरित करते हैं और अंग्रेज़ी की कोचिंग द्वारा उनका आत्मविश्वास बढ़ाते हैं।"

विद्यार्थी छुट्टियों पर घर नहीं जाते। वे कोर्स की पूरी अवधि, यानि कि एक साल तक यहाँ रहते हैं। वे NEET परीक्षाओं के बाद ही घर लौटते हैं।

किसी भी विद्यार्थी के पास मोबाइल फोन नहीं होता।

शिवेन कभी-कभी उन्हें मूवी या कहीं घुमाने ले जाते हैं।

वे बच्चों के साथ सभी त्यौहार मनाते हैं।

माता-पिता जब चाहें आकर अपने बच्चों से मिल सकते हैं।

वर्तमान में, 20 विद्यार्थियों के लिये 4 शिक्षक हैं।

ज़ोआलजी में मास्टर्स की डिग्री रखने वाले दुर्गा प्रसाद फाउंडेशन की शिक्षकों में से एक हैं।

उन्हें बतौर शिक्षक आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में विद्यार्थियों की कोचिंग और उन्हें प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं के लिये तैयार करने में आठ वर्षों का अनुभव है।

"हम सबसे पहले विद्यार्थियों की विषय की मूल जानकारी को मज़बूत करते हैं," दुर्गा ने बताया। "विषय की ठोस जानकारी के बिना आप किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे सकते।"

"इसके बाद हम उन्हें कल्पना आधारित सवाल देते हैं, जो NEET के सवालों से मिलते-जुलते हैं, लेकिन बिल्कुल उनके जैसे नहीं होते। ये सवाल उनकी सोच में तेज़ी लाने के लिये बनाये जाते हैं।"

"यहॉं रटने या किसी और के सहारे पढ़ने से काम नहीं चलता। जब विद्यार्थी सोच कर जवाब देने में सक्षम हो जाये, तो वह NEET के लिये तैयार हो जाता है।"

Ajay -- who plans to build classrooms and a hostel under the Zindagi Foundation -- treats the students like family.

फोटो: अजय -- जो ज़िंदग़ी फ़ाउंडेशन के अधीन एक क्लासरूम और एक छात्रावास बनाने की योजना में हैं -- विद्यार्थियों को अपने परिवार का सदस्य मानते हैं।

फाउंडेशन की सफलता की कहानियों में कृष्णा मोहंती, भुबनेश्वर के एक राजमिस्त्री की इकलौती बेटी की कहानी शामिल है।

उसने 12वीं की परीक्षा में 90% अंक हासिल किये और एक साल की पढ़ाई के बाद पिछले साल NEET में सफलता हासिल की।

"बचपन से ही मैं डॉक्टर बनने का सपना देखती थी, और ज़िंदग़ी फाउंडेशन ने मेडिकल कॉलेज में दाखिला पाने में मेरी मदद की," कृष्णा ने कहा, जो गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज की छात्रा है।

कानपुर के एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले अनिरुद्ध नायक ने भी फाउंडेशन में दाखिला लिया।

उसने 12वीं में 82% अंक हासिल किये और NEET की तैयारी के लिये एक कोचिंग क्लासेज़ में दाखिला लिया, लेकिन योग्यता पाने में 10 अंकों से चूक गया।

दूसरी बार कोचिंग के लिये पैसे न होने पर, उसने ज़िंदग़ी फाउंडेशन की शरण ली। अनिरुद्ध आज कटक के एक कॉलेज में मेडिसिन की पढ़ाई कर रहा है।

जब भी मौका मिले, अजय अपने विद्यार्थियों को उनके प्रदर्शन पर ध्यान देने, कड़ी मेहनत करने और अपने सपनों को पूरा करने के लिये प्रेरित करते हैं।

"मैं उन्हें याद दिलाता रहता हूं -- हमेशा याद रखो कि तुम कहाँ से आये हो, कहाँ हो, और तुम्हें कहाँ जाना है।"

"मैं जानता हूं कि तुम समाज को बदल सकते हो।"

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ए गणेश नाडार