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'उन्हें पृथ्वी पर तीन महीने का ही बैन लगाना चाहिये था'

By हरीश कोटियन
August 08, 2019 16:25 IST
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'इंसानी गलतियाँ होना आम बात है, और यह मामला भी इंसानी ग़लती का ही है, उसे पता नहीं था कि खाँसी का सिरप उसे बैन करवा सकता है और यही सबसे ज़्यादा दुःख की बात है। वह सिर्फ 19 साल का है और यह उसकी पहली ग़लती थी।'

एक पुराने अधिकारी ने रिडिफ़.कॉम के हरीश कोटियन को बताया कि क्यों शॉ को कम सज़ा दी जानी चाहिये थी, और क्यों BCCI का ऐंटी-डोपिंग कार्यक्रम देश में सबसे ज़्यादा आधुनिक है।

Prithvi Shaw was handed a back-dated eight-month suspension for a doping violation after ingesting a prohibited substance Terbutaline. Photograph: Ryan Pierse/Getty Images 

फोटो: पृथ्वी शॉ को टर्ब्यूटलीन नामक एक प्रतिबंधित पदार्थ लेने के कारण डोपिंग के अपराध में आठ महीनों का बैक-डेटेड सस्पेंशन दिया गया। फोटोग्राफ: Ryan Pierse/Getty Images

पृथ्वी शॉ की ग़लती एक 'इंसानी ग़लती' है और उसे आठ महीनों के बैन की सख़्त सज़ा नहीं दी जानी चाहिये थी, क्योंकि अन्य खिलाड़ियों को पहले भी इसी तरह की ग़लतियों के लिये कम सज़ा मिली है, एक पूर्व BCCI अधिकारी ने अपना विचार जताया।

"इस मामले में, शॉ को कई बार सिखाया गया है, पिछले तीन सालों में कम से कम तीन बार, लेकिन वो लापरवाह था; उसने देखा नहीं कि दवा प्रतिबंधित दवाओं की सूची में है या नहीं। इंसानी ग़लतियाँ होना आम बात है, और यह मामला भी इंसानी ग़लती का ही है, उसे पता नहीं था कि खाँसी का सिरप उसे बैन करवा सकता है और यही सबसे ज़्यादा दुःख की बात है। वह सिर्फ 19 साल का है और यह उसकी पहली ग़लती थी।," बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल फोर क्रिकेट इन इंडिया के ऐंटी-डोपिंग कार्यक्रम का हिस्सा रह चुके अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर रिडिफ़.कॉम को बताया।

उन्होंने श्री लंका के उपुल तरंगा और पूर्व भारतीय ऑल-राउंडर युसुफ़ पठान का उदाहरण दिया, जो शॉ को मुश्किल में डालने वाले पदार्थ टर्ब्यूटलीन के लिये पॉज़िटिव पाये गये थे, लेकिन उनपर सिर्फ तीन-महीनों का बैन लगा था।

"अगर आप देखें, तो श्री लंका का एक खिलाड़ी (उपुल तरंगा) भी खाँसी के लिये एक आयुर्वेदिक मिश्रण लेने के बाद टर्ब्यूटलीन नामक पदार्थ के लिये पॉज़िटिव पाया गया था, जिसके लिये उस पर तीन महीनों का बैन लगा था।

"युसुफ़ पठान के मामले में भी यही बात हुई थी, लेकिन उस पर सिर्फ तीन महीनों का बैन लगा था, ताकि वह IPL में खेल सके।"

अधिकारी का मानना है कि शॉ जैसे युवा खिलाड़ी के लिये यह बात समझना मुश्किल रहा होगा कि खाँसी का एक मामूली सिरप भी उसे मुश्किल में डाल सकता है।

"उसे स्वतंत्र रीव्यू बोर्ड को यह विश्वास दिलाने पर ध्यान देना चाहिये था कि यह उसकी पहली ग़लती थी और ग़लती एक 19 साल के बच्चे से हुई है। ऐसे अस्सी प्रतिशत मामले खाँसी के मिश्रणों के कारण होते हैं, जो ग़लती से होते हैं, इसलिये उन्हें शॉ पर तीन महीनों का ही बैन लगाना चाहिये था," उन्होंने कहा।

हालांकि टेस्ट का पॉज़िटिव होना डोपिंग पर BCCI का रुख़ नहीं दर्शाता। बल्कि BCCI का ऐंटी-डोपिंग प्रोग्राम देश में सबसे ज़्यादा आधुनिक है, जिसके कारण पॉज़िटिव टेस्ट के बहुत ही कम मामले सामने आते हैं, उन्होंने स्पष्ट किया।

"BCCI के बारे में लोगों की एक ग़लत धारणा है कि वे डोप टेस्टिंग में आधुनिक पद्धति नहीं अपनाते, जबकि उनका काम शानदार है। 2010 से आज तक, हमने चार पॉज़िटिव मामले देखे हैं, जिनमें से तीन भारतीय थे और एक विदेशी खिलाड़ी था।

"ये तीनों ही खिलाड़ी टर्ब्यूटलीन लेते हुए पाये गये थे, जो कि दुर्भाग्य की बात है। उन्होंने मिश्रण की जाँच किये बिना खाँसी का सिरप ले लिया था।"

"यह सभी प्रकार के खेल-कूद और ICC के शिक्षण के अनुसार भी अभी तक के भारत के बेहतरीन ऐंटी-डोपिंग कार्यक्रमों में से एक है; हम ऑस्ट्रेलिया या इंग्लैंड के समान ही आधुनिक हैं। हम सभी प्रकार की टेस्टिंग करते हैं, जिनमें साल भर में लगभग 250 टेस्ट्स शामिल हैं।

"शैक्षणिक कार्यक्रम इसका सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा था, और हमारा एक 24x7 कॉल सेंटर भी था, जहाँ आप दिन या रात में कभी भी फोन करके पूछ सकते थे कि आप कोई दवा ले सकते हैं या नहीं। हर ज़ोन में हमारा एक डॉक्टर था, और फिर भी उन्हें कोई संदेह होने पर वे BCCI के ऐंटी-डोपिंग पैनल से संपर्क कर सकते थे।

"जब भी खिलाड़ी किसी डॉक्टर के पास उनके क्लिनिक में जाते थे, तो कोई भी दवा सुझाई जाने से पहले डॉक्टर को एक ऐंटी-डोपिंग बुकलेट दिखाई जाती थी, जिसमें प्रतिबंधित दवाओं की सूची होती थी। इसके बाद डॉक्टर उन्हें BCCI पैनल को फोन करके सलाह लेने का सुझाव देते थे। यानि कि सिस्टम बिल्कुल सख़्त है!"

जब उनसे पूछा गया कि सबसे अच्छा ऐंटी-डोपिंग सिस्टम होने के बावजूद BCCI क्यों देश की नेशनल ऐंटी-डोपिंग एजेंसी के दायरे में नहीं आना चाहता, तो उन्होंने बताया: "BCCI को गर्व है कि उनका ऐंटी-डोपिंग सिस्टम बेहतरीन है, और किसी को इस सिस्टम में दखल नहीं देना चाहिये।

"भारत में क्रिकेट एक बड़ा खेल है, जिसके कारण हर कोई इसमें घुसना चाहता है।

"मैं आलोचना नहीं करना चाहता, लेकिन अगर आप परिणामों पर नज़र डालें, तो पायेंगे कि NADA को बहुत ज़्यादा पॉज़िटिव टेस्ट मिलते हैं। हमें क्रिकेट में 2010 से सिर्फ चार पॉज़िटिव टेस्ट मिले हैं, जबकि उन्हें हर साल लगभग 200 मिलते हैं। मुझे लगता है कि उनका कोई शिक्षण कार्यक्रम नहीं है, लेकिन हमारे पास एक पुस्तिका के रूप में अंग्रेज़ी और हिंदी में शिक्षण कार्यक्रम है, साथ ही हम सेमिनार भी आयोजित करते हैं। सभी राज्यों के सभी अंडर-16 खिलाड़ी -- पुरुष और महिलाएँ, अंडर-19, अंडर-23 और वरिष्ठ खिलाड़ी इस शिक्षण कार्यक्रम को प्राप्त करते हैं।

हमारे डॉक्टरों की एक टीम है, जो कार्यक्रम की शिक्षा देती है, जिसमें हर खिलाड़ी को शामिल होना पड़ता है, और कार्यक्रम में शामिल न होने वाले खिलाड़ी को सीज़न के लिये रजिस्टर करने की अनुमति नहीं दी जाती।

"यह लगभग फूलप्रूफ़ है, लेकिन किसी भी कानूनी मामले की तरह इसमें भी चूक की गुंजाइश है, और पृथ्वी के मामले में चूक यह थी कि उसने टीम डॉक्टर को इत्तला नहीं की, उसने बेस डॉक्टर की सलाह नहीं ली। और फिर स्वतंत्र रीव्यू बोर्ड को इसमें कम सख़्ती बरतनी चाहिये थी, क्योंकि यह उसकी पहली ग़लती थी। वह एक युवा खिलाड़ी है और उसे तीन महीनों की सज़ा दी जा सकती थी।"

इस अधिकारी ने BCCI के ऐंटी-डोपिंग कार्यक्रम को और बेहतर बनाने से जुड़े सुझाव भी दिये।

"ऐंटी-डोपिंग के मामले में, BCCI शिक्षण कार्यक्रम के रूप में अच्छा काम कर रही है, क्योंकि सभी राज्यों में 3000 से ज़्यादा खिलाड़ी हैं। शायद उन्हें थोड़ा और सख़्त होना पड़ेगा और सुनिश्चित करना पड़ेगा कि हर खिलाड़ी जागरुकता कार्यक्रम में आये।

"उन्हें थोड़ी और सख़्ती की ज़रूरत है, ताकि टीम डॉक्टर या टीम फिज़ियो द्वारा दवा दी जाने के बाद भी खिलाड़ी 24x7 हेल्पलाइन पर कॉल करके दुबारा जाँच करें।"

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