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'ऐसे मिशन्स का एकाएक होना बेहद ज़रूरी है '

March 01, 2019 08:56 IST

'अगर सामने वाले को आपके आने की भनक पड़ गयी, तो आपकी मौत निश्चित है।'

मंगलवार, फरवरी 26, 2019 की सुबह भारतीय वायु सेना के पायलट्स 12 मिराज 2000 फाइटर जेट्स में मध्य प्रदेश से रवाना हुए और अलग-अलग बैचेज़ में पाकिस्तान की ओर बढ़े।

कारगिल युद्ध में अहम्‌ भूमिका निभाने वाले ये जहाज़ पाकिस्तान के काफी भीतर स्थित आतंकवादियों के ट्रेनिंग कैम्प्स की ओर बढ़ रहे थे।

जहाज़ों में लेज़र गाइडेड बम मौजूद थे और साथ ही इनमें इज़राइली लाइटनिंग टार्गेटिंग पॉड्स भी थे।

पायलट्स ने अपने निशानों की एक आखिरी बार जाँच की और कमांड सेंटर से लाइन ऑफ़ कंट्रोल (नियंत्रण रेखा) से बाहर निकलने की अनुमति हासिल की।

उन्होंने काफी नीची उड़ान भरी, ताकि पाकिस्तानी रेडार को उनका पता न चले।

चार सुखोइ-30s एयर कवर दे रहे थे।

एक शुरुआती चेतावनी देने वाला जेट पंजाब से उड़ा।

एक मिड-एयर रीफ़्यूलिंग टैंकर IL-78 उत्तर प्रदेश से रवाना हुआ।

एक आइएएफ हेरॉन सर्वीलंस अनामित हवाई वाहन पाकिस्तानी जहाज़ों और रेडार पर नज़र रखने के लिये टीम के साथ रवाना हुआ।

हवाई समन्वय के लिये हवाई अर्ली वॉर्निंग और कंट्रोल सिस्टम से सुसज्जित इम्ब्रेसर जहाज़ का इस्तेमाल किया गया।

मिराज 2000 जेट्स के पायलट्स ने निशानों को पुख़्ता करने के लिये लेज़र पैड्स का इस्तेमाल किया था। लेज़र बम लक्ष्य पर पहुंचने तक लेज़र किरण पर चलता है।

अंत में, जेट्स ने अपने बम जैश-ए-मुहम्मद कैम्प्स पर गिराये और पाकिस्तानी हवाई सुरक्षा को भनक पड़ने से पहले भारत लौट गये।

इस पूरे मिशन में लगभग 17 मिनट का समय लगा, जिसमें भारतीय जहाज़ पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र के 10 मील भीतर जाकर लौटे।

"आइएएफ में, सिर्फ पायलट्स ही दुश्मनों की सीमा के भीतर जाते हैं। वे काफी भीतर जाते हैं, लड़ते हुए भीतर जाने और बाहर आने का रास्ता तय करते हैं। उन्हें बहुत ही ऊंचे स्तर की ट्रेनिंग, आत्मविश्वास, निडरता, जोखिम उठाने का क्षमता और साहस की ज़रूरत होती है। लेकिन एक विशाल इन्फ्रास्ट्रक्चर भी उनका साथ देता है, जिसके बिना यह सब संभव नहीं है,''एक रिटायर्ड मिराज 2000 पायलट ने रिडिफ.कॉम  की अर्चना मसीह को बताया।

इस तरह के ऑपरेशन के लिये जेट्स पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र में कितनी देर रहे होंगे ?

कहना मुश्किल है, लेकिन इसमें कुछ मिनट लगे होंगे। आपको तेज़ी से जाना है, ज़ोरदार हमला करना है, और वापस लौटना है। आप वहाँ बिल्कुल रुक नहीं सकते।

इन ऑपरेशन्स के लिये बहुत ही मज़बूत योजना बनाई जाती है; रास्तों का पहले से पता होता है और पूरी योजना पायलट के दिमाग में छप सी जाती है।

जैसे ही आप निशाने पर बम गिराते हैं, दुश्मन अपने इंटरसेप्टर्स को स्क्रैम्बल करके तुरंत आपको निशाना बनाता है, इसलिये पायलट्स हथियार गिराते ही वापस लौटते हैं।

दुश्मनों के हवाई क्षेत्र में होने पर उनके जेट्स को तैयार होने में कितना समय लगता है ?

यह दुश्मन की सतर्कता पर निर्भर करता है, और सीआरपीएफ के हमले के बाद के माहौल से लगता है कि वे पूरी तरह सतर्क थे।

उनके रेडार ज़रूर तैयार होंगे, लेकिन आधुनिक युद्ध तकनीक में आप दुश्मनों की सुरक्षा को कमज़ोर या नष्ट करके युद्ध का मैदान तैयार करते हैं।

आप उनके रेडार को जाम कर देते हैं, डेकॉय नमूने इत्यादि का इस्तेमाल करते हैं, ताकि दुश्मन के जवाबी हमले में समय लगे।

उनके जवाबी हमले की शुरुआत से पहले आपको बम गिरा कर वापस लौट आना होता है।

इस तरह के ऑपरेशन के लिये बहुत ही ज़्यादा तैयारी की ज़रूरत पड़ती है।

यहाँ बात सिर्फ एक जहाज़ के जाने और बम गिराने की नहीं है। इसे संभव बनाने के लिए साथ में कई काम चल रहे होते हैं।

जहाज़ों की संख्या निशानों की संख्या पर निर्भर करती है।

इन जेट्स को दुश्मन के हवाई क्षेत्र में उड़ाने वाले पायलट्स को किन खतरों का सामना करना पड़ता है ?

पायलट्स अपने खतरों को समझते हैं। यही उनका काम है। वे लड़ते हुए घुसने और बाहर आने के लिये तैयार होते हैं।

दूसरी ओर भी एक प्रशिक्षित वायु सेना होती है, जो अपने हवाई क्षेत्र की सुरक्षा में जी-जान लगा देते हैं।

इसलिये आपको पूरी तरह तैयार रहना पड़ता है - भीतर जाइये, उन्हें हराइये और वापस लौटिये।

ऐसे मिशन्स के लिये पायलट्स कैसे चुने जाते हैं ?

आइएएफ शांति के समय में अपने पायलट्स को ऐसे मिशन्स के लिये ट्रेनिंग देती है। ये दस्ते में उपलब्ध होते हैं और किसी भी समय आने के लिये तैयार रहते हैं।

हमला (पुलवामा में फरवरी 14, 2019 की आत्मघाती बमबारी, जिसमें 44 CRPF जवान मारे गये) 12 दिन पहले हुआ था, इसलिये इस योजना को बनाने में कुछ दिन लगे होंगे। लेकिन पायलट्स कुछ ही मिनटों में जुटाये जा सकते हैं।

स्ट्राइक से पहले क्रू रूम में क्या चल रहा होगा ?

बहुत ही ज़्यादा तैयारी का माहौल होता है।

पायलट्स का पूरा ध्यान अपने काम पर होता है।

वे सभी प्रक्रियाओं, आपातकालीन स्थितियों, बैक-अप प्लान की जाँच करते हैं, निशाने की जाँच करते हैं, देखते हैं कि उन्हें कब, क्या और कैसे करना है और मन में दुहराते हैं।

पायलट्स का पूरा ध्यान मिशन पर होता है और वे अपना ध्यान भटकने नहीं दे सकते।

मिशन से लौटने के बाद, एक डीब्रीफ़ होती है। वो बताते हैं कि क्या-क्या हुआ, उससे सीखते हैं और अगली लड़ाई की तैयारी करते हैं।

क्या ऐसे हमलों के लिये सबसे अनुभवी पायलट्स को भेजा जाता है ?

दस्ता अनुभवी पायलट्स तो भेजता ही है, लेकिन युवा पायलट्स भी भेजे जाते हैं - यह उस समय की योजना पर निर्भर करता है।

इस तरह की स्ट्राइक्स में सबसे बुरी चीज़ क्या हो सकती है ?

उड़ान के दौरान बहुत सारी चीज़ें हो सकती हैं और किसी भी चीज़ को सबसे बुरी नहीं कह सकते।

पायलट्स सबसे बुरी संभावना के बारे में नहीं सोचते, वो आपातकालीन स्थितियों के बारे में सोचते हैं और उसी के अनुसार अपने फैसले लेते हैं।

आपके साथ कुछ भी हो सकता है, आपको बस हर संभावना के लिये तैयार रहना चाहिये।

ऐसे मिशन का एकाएक होना बेहद ज़रूरी है। इनकी चर्चा नहीं की जाती।

अगर दुश्मनों को आपके आने की भनक पड़ गयी, तो आपकी मौत निश्चित है।

आप चुपचाप जाते हैं, जिसके बारे में बहुत ही कम लोगों को पता होता है। इसी तरह आप दुश्मन को चौंका सकते हैं।

फाइटर जेट्स को कैम्प्स नष्ट करने के लिये बालाकोट जाने की ज़रूरत नहीं थी। क्या उनके लिये पाकिस्तानी LoC पर कुछ किलोमीटर दूर से निशानों पर हमले करना संभव था ?

ऐसे लंबी दूरी के हथियार होते हैं, जिनके साथ आपको निशाने के ऊपर या नज़दीक जाने की ज़रूरत नहीं होती। ये आपको दुश्मन की हवाई सुरक्षा से दूर रखते हैं, जो अक्सर निशाने के पास ही होते हैं।

रेंज कुछ दर्जन से लेकर सैंकड़ों किलोमीटर की हो सकती है, यह आपके हथियार पर निर्भर करता है।

इस मिशन पर 12 जहाज़ गये थे , उन सभी ने तो बम नहीं गिराये होंगे , इनमें से कुछ कवर देने के लिये गये होंगे। ऐसे ऑपरेशन्स में जेट्स की कौन - कौन सी भूमिकाऍं होती हैं ?

यह एक कोऑर्डिनेटेड मिशन है, जिसमें कई चीज़ें एक साथ होती हैं।

जहाज़ों का इस्तेमाल रेडार जाम करने, रास्ते बनाने के लिये भी किया जाता है - लेकिन लक्ष्य सही निशाने पर हथियार को गिराने का ही होता है।

इसके लिये हर संभव तैयारी के साथ वातावरण बनाया जाता है।

यह फैसला कैसे लिया जाता है कि कौन सा जहाज़ हमला करेगा ?

यह जहाज़ की क्षमता पर निर्भर करता है, सबसे अच्छे और सबसे सक्षम जहाज़ ही ऐसे हमलों में इस्तेमाल किये जाते हैं। जहाज़ में हथियारों की सही क्षमता, बम ले जाने के लिये पॉड्स और सेल्फ़ डिफेंस के उपकरण होने चाहिये।

जहाज़ में ये सारी ख़ूबियाँ होनी चाहिये। भारतीय वायु सेना के पास ऐसे कई जहाज़ हैं।

मिराज 2000 ऐसे मिशन के लिये सही क्यों है ?

मिराज 2000 एक बहुत ही शक्तिशाली मल्टी-रोल जहाज़ है और आज सुबह किया गया ऑपरेशन इसके कई कामों में से एक है।

ऐसी स्ट्राइक्स के लिये बारीकी से हमले करने की क्षमता ज़रूरी है, ताकि हथियार सही निशाने पर गिराया जा सके, और आइएएफ के मिराज 2000, Su-30 जैसे ज़्यादातर जहाज़ इसके लिये सक्षम हैं।

मिराज 2000 एक बहुत ही शक्तिशाली प्लैटफॉर्म है, जिसकी काबिलियत हमने कुछ साल पहले कारगिल में देखी थी और आज फिर देख रहे हैं।

मिराज 2000 पर किस प्रकार के बम ले जाये जाते हैं ?

दो तरह के बम - गिराये जाने वाले साधारण बम और जहाज़ के पॉड से छोड़े जाने वाले लेज़र गाइडेड बम।

लेज़र बम निशाने पर पहुंचने तक लेज़र किरण का पीछा करता है।

इस तरह के हवाई हमले पर पाकिस्तान की क्या प्रतिक्रिया हो सकती है ?

यह सामने वाले पर निर्भर करता है और आपका इस पर कोई नियंत्रण नहीं होता।

हमें किसी भी प्रतिक्रिया के लिये तैयार रहना चाहिये। हम उन्हें रोक सकते हैं।

इस तरह का मिशन होने पर जवाबी हमले की गुंजाइश होती ही है।

ऑपरेशन से पहले भी आप जवाबी हमले के लिये तैयार रहते हैं और आपकी सुरक्षा पहले से तैयार होती है।

आप हमला करने से पहले बैठ कर सोच नहीं सकते कि जवाबी प्रतिक्रिया कैसी होगी।

इस महीने क्रैशेज़ और पायलट्स खोने के बाद , इससे आइएएफ पायलट्स का हौसला काफी बढ़ा होगा।

एक पायलट को ट्रेन करने में कई साल और करोड़ों का निवेश लगता है। जहाज़ बदले जा सकते हैं, लेकिन पायलट्स के अनुभव को बदला नहीं जा सकता।

मुझे विश्वास है लोगों को अच्छा महसूस हुआ होगा, लेकिन भारतीय वायु सेना एक पेशेवर वायु सेना है, आप यहाँ कट्टर देशभक्ति की उम्मीद नहीं कर सकते।

यह किया जाने वाला एक काम था, जिसे अच्छी तरह पूरा किया गया।

यह होने की संभावना बहुत दिनों से थी। उन्होंने सीमा पार की, काम पूरा किया और दुश्मन को कड़ा संदेश भेजा।

आने वाले कल के बारे में सोचना और उसके लिये तैयार रहना ज़रूरी है। यही हमारे लिये अभी सबसे ज़रूरी चीज़ है, जो बीत गयी, सो बात गयी।

मिशन पर तैनात पायलट्स के लिये यह बहुत ही बड़ी उपलब्धि होगी।

आइएएफ पायलट्स को इसी के लिये प्रशिक्षण दिया जाता है। आप युद्ध नहीं चाहते, लेकिन युद्ध छिड़ जाने पर आप आगे बढ़कर अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन करते हैं।

आपको इसी की ट्रेनिंग मिली है और आपको इसी पल का इंतज़ार रहता है।

आइएएफ में पायलट्स ही दुश्मन की सीमा के भीतर जाते हैं।

वो काफी भीतर जाते हैं, और लड़ते हुए भीतर जाने और बाहर आने का रास्ता तय करते हैं।

उन्हें इसके लिये बहुत ऊंचे दर्जे की ट्रेनिंग, निडरता, आत्मविश्वास, जोखिम उठाने की क्षमता और साहस की ज़रूरत होती है।

लेकिन एक पूरा इन्फ्रास्ट्रक्चर इसमें आपका साथ देता है, जिसके बिना यह संभव नहीं है।

जहाँ एक ओर कॉकपिट में बैठा जवान बटन दबाता है और सबसे ज़्यादा जोखिम उठाता है, वहीं दूसरी ओर एक पूरा संगठन ऐसा करने में आपकी मदद कर रहा होता है -AWACS, फ़्यूलिंग, बम लोड करने वाले तकनीशियन इत्यादि सभी लोग बम के निशाने पर गिरने तक साथ मिल कर काम करते हैं।

ऑपरेशन की सफलता आइएएफ की कुशलता और टीमवर्क का प्रतीक है, जो हमारे देश के हवाई क्षेत्र को सुरक्षित रखता है और देश की राजनैतिक व्यवस्था के आदेश पर दुश्मन को धूल चटाने के लिये तैयार रहता है।

अर्चना मसीह