'अगर कोई मूवी बॉक्स ऑफ़िस पर अच्छा प्रदर्शन करे, तो उसका मतलब यह नहीं कि लोगों को आज-कल डरना पसंद आ रहा है।'
'हो सकता है एक शुक्रवार लोग डरना चाहें, अगले शुक्रवार प्यार करना चाहें और उसके अगले शुक्रवार हँसना चाहें।'
फोटो: घोस्ट का एक दृश्य।
एक और हॉरर मूवी के साथ विक्रम भट्ट फिर से कला के मंच पर लौटे हैं।
सनाया ईरानी की घोस्ट एक सच्ची कहानी पर आधारित है, और पहली बार कोई डायरेक्टर इस तरह की कहानी पर काम कर रहा है।
"अगर आप पर किसी आत्मा का साया हो और आप किसी का ख़ून कर दें, तो कोई कैसे साबित कर पायेगा कि आपके भीतर के शैतान ने यह काम किया है? विक्रम भट्ट ने रिडिफ़.कॉम की संवाददाता दिव्या सोलगामा को फिल्म का प्लॉट बताते हुए पूछा।
घोस्ट आपकी पिछली हॉरर फिल्मों से कैसे अलग है?
घोस्ट एक सच्ची कहानी पर आधारित है और मैंने आज तक कभी सच्ची कहानी पर आधारित कोई फिल्म नहीं बनाई है।
यह घटना 1981 में युनाइटेड स्टेट्स में घटी थी -- एक आदमी ने अपने मकान मालिक की हत्या कर दी थी, जिसपर अदालत में हत्या का मुकदमा चला था।
बचाव पक्ष के वकील का कहना था कि हत्या उसने नहीं की है, उसपर किसी प्रेतात्मा का साया है। उनके भीतर छुपे साये ने यह हत्या की है।
इस घटना को कानून व्यवस्था और अलौकिक शक्तियों के बीच की लड़ाई के रूप में देखा जा सकता है।
अगर आप पर किसी आत्मा का साया हो और आप किसी का ख़ून कर दें, तो कोई कैसे साबित कर पायेगा कि आपके भीतर के शैतान ने यह काम किया है?
हॉरर ट्रेंड आजकल फीका पड़ता दिखाई दे रहा है।
बॉलीवुड में भेड़चाल की प्रथा है।
एक फिल्म के सफल होने पर सभी वैसी ही फिल्म बनाने लग जाते हैं।
अगर कॉमेडी या ऐक्शन फिल्में अच्छा करें, तो सभी बनाने लग जायेंगे।
बायोपिक्स सफल हों, तो सब बायोपिक्स बनाने लगेंगे।
इस तरह की सोच होना सही नहीं है और ऐसा नहीं सोचना चाहिये कि लोग किसी एक चीज़ को पसंद करते रहेंगे।
लोगों को अलग-अलग चीज़ें पसंद आती हैं, और कभी भी लोग एक चीज़ से चिपके नहीं रहते।
अगर कोई मूवी बॉक्स ऑफ़िस पर अच्छा प्रदर्शन करे, तो उसका मतलब यह नहीं कि लोगों को आज-कल डरना पसंद आ रहा है।
हो सकता है एक शुक्रवार लोग डरना चाहें, अगले शुक्रवार प्यार करना चाहें और उसके अगले शुक्रवार हँसना चाहें।
फोटो: विक्रम भट्ट सनाया ईरानी के साथ। फोटोग्राफ: Vikram Bhatt /Instagram के सौजन्य से
आपने हमेशा अपनी फिल्मों में नयी चीज़ें आज़माई हैं। म्यूज़िकल हॉरर राज़ से लेकर 3डी हॉरर फिल्म हॉन्टेड या शैतान की मूवी क्रीचर 3डी तक, आप हर बार नयी चीज़ कैसे लेकर आते हैं?
यह मुश्किल काम नहीं है।
मैं कहानी सुनाता हूं और मेरे पास सुनाने के लिये कई कहानियाँ हैं।
अगर आपके पास कोई अलग कहानी हो, तो उससे जुड़ी हर चीज़ बदल जाती है।
मैंने फेसबुक पर सोच पर आधारित 200 से ज़्यादा कहानियाँ लिखी हैं।
तो मेरे पास कहानियों की कमी नहीं है।
1980 के दशक में सेक्स हॉरर फिल्मों का अहम हिस्सा होता था। क्या आपने अपनी फिल्म में इसे शामिल करने का कोई दबाव महसूस किया?
नहीं।
आख़िरकार, कहानी चलती है। और कुछ नहीं -- सेक्स नहीं, हॉरर नहीं, कुछ भी नहीं।
लोग फिल्में भावनाओं के नज़रिये से देखते हैं।
वे किरदारों को देखते हैं, उनसे जुड़ते हैं और फिल्म का मज़ा लेते हैं।
आपकी मनपसंद फिल्में कौन सी हैं?
मेरी अपनी फिल्मों में से, 1920 मेरी मनपसंद फिल्म है।
भारतीय फिल्मों में से, बीस साल बाद, महल और भूत मेरी मनपसंद फिल्मों में शामिल हैं।
दि इक्ज़ोर्सिस्ट, दि इक्ज़ोर्सिज़्म ऑफ़ एमिली रोज़, दि ओमेन, एविल डेड, ब्लेयर विच और पैरानॉर्मल ऐक्टिविटी मेरी मनपसंद इंटरनेशनल फिल्में हैं।